भारतीय सूचना अधिकार रक्षा मंच अध्यक्ष शकील अख्तर की अध्यक्षता में लोहरदगा का पावर गंज स्थित होटल केतकी में मंगलवार को जिले के सामाजिक एवं सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं की बैठक आयोजित की गई। बैठक में भारतीय सूचना अधिकार रक्षा मंच केंद्रीय अध्यक्ष रविकांत पासवान , केंद्रीय महासचिव आनंद किशोर पंडा विशेष रूप से उपस्थित रहें। कार्यक्रम के पूर्व आए अतिथियों का शकील अख्तर ने पुष्प गुच्छा देकर स्वागत किया। केंद्रीय अध्यक्ष रविकांत पासवान ने आरटीआई कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए सूचना का अधिकार अधिनियम की जानकारी दी. आरटीआई एक्ट, 2005 के विभिन्न धाराओं का जानकारी दी। प्रदीप राणा ने कहा कि सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 भारत के समस्त नागरिकों का एक संवैधानिक मौलिक अधिकार कानून है, जिसे देश के हर नागरिक प्रयोग कर सकता है, किसी भी सरकारी लोक प्राधिकार से सूचना मांग सकता है और एक्ट में निर्धारित समय सीमा के अंदर उस कार्यालय के जन सूचना पदाधिकारी को आवेदनकर्ता को सूचना दे देनी चाहिए लेकिन हर अधिकारी इसका अनुपालन नहीं करते हैं जो सूचना का अधिकार कानून की घोर अवहेलना है। इसके बाद सर्वसम्मति से लोहरदगा जिला कमेटी का गठन किया गया. शकील अख्तर को जिला अध्यक्ष बनाया गया है। एजाज अखतर,नन्दु महली,उपेन्द्र यादव,रंजीत कुमार गिरी, को उपाध्यक्ष, कार्यकारणी सदस्य – नीरज चोपरा,नारायण यादव,को बनाया गया, जिला -सह-सचिव – कयूम अंसारी,जिला सचिव, संजय विश्वकर्मा को बनाया गया है। इस कार्यक्रम में कार्यकर्ताओं ने सूचना का अधिकार अधिनियम के प्रयोग के बाद होने वाली परेशानियों से अवगत कराया. केंद्रीय टीम ने निराकरण का उपाय बताया। भारतीय सूचना अधिकार रक्षा मंच नवनिर्वाचित अध्यक्ष शकील अख्तर ने कहा कि सूचना नहीं मिलने की स्थिति में आवेदकों के द्वारा प्रथम विभागीय अपील कर याचित सूचनाओं की मांग की जाती है. अपीलीय अधिकारी को गंभीरता पूर्वक आवेदक को संबंधित जन सूचना पदाधिकारी से सूचनाएं दिलाननी चाहिए लेकिन वह भी नियत समय पर अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन नहीं करते हैं जिसके कारण मामला सूचना आयोग में चला जाता है जहां कब मामले की सुनवाई होगी और कब सूचनाएं दिलाई जाएंगी, कहना मुश्किल है. यह गंभीर चिंता का विषय है. ऐसे में सूचना का अधिकार लागू होने का जो मूल उद्देश्य है, वह प्रभावित हो रहा है। मंच ने चिंता जाहिर करते कहा कि झारखंड की हेमंत सरकार सूचना का अधिकार कानून की दुश्मन है. अपने कार्यकाल में अब तक संवैधानिक संस्था झारखंड राज्य सूचना आयोग को मृत सैय्या पर ला दिया है. सूचना आयोग में एक भी सूचना आयुक्त नहीं है. आयोग में लगभग 25000 आरटीआई का मामला आयोग में लंबित है. ऐसे में भ्रष्ट और निकम्मे अधिकारी गदगद हैं. राज्य में भ्रष्टाचार चरम सीमा पर पहुंच गया है. राज्य के हर नागरिक को अपने अधिकार की रक्षा के लिए लड़ाई लड़नी होगी




